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कविता

कुछ कहा शायद

आरती


कदम बढ़ाए थे मैंने डर डरकर
मेरे शब्दों में शंकाओं की थरथराहट को
पकड़ा तुमने
मेरी पूरी हथेली अपनी हथेलियों में लेकर
कुछ कहा शायद
मैंने सिर्फ बुदबुदाहट सुनी
और बस यंत्रवत कंधों में सिर धर दिया तुम्हारे
अब मुझे डर नहीं लग रहा


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हिंदी समय में आरती की रचनाएँ